Play Violin || वायलिन || Violin Instrument || Violin in Hindi || Violin Guitar || Learning Violin for Beginners

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वायलिन एक विशिष्ट आकार के गज से बजने वाला चार तारों से युक्त पाश्चात्य वाद्ययंत्र है। भारत में वायलिन का सर्वपर्थम प्रयोग बालुस्वामी दीक्षित ने कराया था। जबकि एन राजम एवं डी. के दात्तार ने इसकी वादन शैली को समृध्द करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

बनावट (Texture)

वायलिन तंतु वाद्यों में सबसे अधिक लोकप्रिय वाद्य है, इसका भारतीय नाम बेला है। विगत शताब्दी के अंत से यह भारतीय संगीत में प्रवेश कर चुका है। लोकसंगीत में उपलब्ध ‘सारिदा’ नामक वाद्य से इसकी शक्ल विशेष रूप से मिलती-जुलती है। इसमें धातु के स्थान ताँत के तीन तार लगे होते हैं और इसका ‘टेलपीस’ वाला हिस्सा वायलिन जैसा होता है। भारतीय संगीत में वायलिन के समान गज से बजने वाले वाद्यों का प्रचार प्राचीनकाल से रहा है। भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानो का इस सम्बन्ध में यह मत ही कि गज से बजने वाले वाद्यों का सूत्रपात सर्वप्रथम भारत इ हुआ और यहीं से इसका प्रचार विदेशों में फैला। दक्षिण के कुछ मंदिरों में वायलिन के आकार – प्रकार वाले चित्र भी मिलती है, परन्तु इनको किस नाम से पुकारा जाता है, इस सम्बन्ध में कोई जान कारी उपलब्ध नहीं है।
यह माना जाता है कि १३ ई० के लगभग भारत में प्रचलित पिनाकी वीणा से इसका आकार – प्रकार तथा वादन शैली अधिकांश रूप से मिलती – जुलती है। पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार वायलिन का उद्गम ‘वायोलिन’ नामक मध्यकालीन वाद्य से हुआ है, जो स्वयं मध्य एशिया के रिबेका नामक वाद्य का परिवर्तित रूप है। पाश्चात्य देशों में वायलिन ‘वाद्य का राजा’ कहा जाता है।

वादन Play Violin

वायलिन में चार तार होते हैं, इनको लगाने की ये चार पद्धतियाँ प्रचलित है 1. म ,सा, प, 2. म, सा, प रे, 3. प सा प सां 4. सा प सा प। कुछ कलाकार इसमें इच्छानुकूल अधिक स्वरों के तार भी लगा लेते हैं। दक्षिण में चारों तंत्रियों में ताँत लगाई जाती है। इसमें उसकी ध्वनि मानव कण्ठ से मिलती – जुलती है और गायक के संगीत के लिए योग्य बन जाती है। उत्तर में धातु को तान्त्रियाँ अधिक पसंद की जाती है।
सामान्यतः वायलिन ‘म सा प सा ‘ तथा प, सा प, सां स्वरों को मिलाया जाता है। इसमें दो सप्तकों का स्वर क्षेत्र वादकों के लिए सुलभ हो जाता है और प्रायः गायकों की संगती का काम भी इसमें भली – भाँती संपन्न हो जाता है। दक्षिण में वायलिन सां प सा प में मिलाने की प्रथा है। इसमें लगभग 2 परनाक़ 1/2 सप्तकों का स्वर क्षेत्र सुलभता से मिल पाता है। इसके अंतर्गत तार सप्तक के रि से लेकर प तक के स्वर अनामिका या कनिष्ठिका को घसीटकर निकालने पड़ते हैं।

स्ट्रैडिवेरियस लेबल वाले वायलिन

एंटोनियो स्ट्राडिवरी का जन्म 1644 में हुआ था, और उन्होंने क्रेमोना, इटली में अपनी दुकान स्थापित की, जहां वे 1737 में अपनी मृत्यु तक सक्रिय रहे। वायलिन के लिए ज्यामिति और डिजाइन की उनकी व्याख्या ने 250 से अधिक वर्षों से वायलिन निर्माताओं के लिए एक वैचारिक मॉडल के रूप में काम किया है।

वर्तमान अनुमान के अनुसार, स्ट्राडिवरी ने वीणा, गिटार, वायला और सेलोस भी बनाए – कुल मिलाकर 1,100 से अधिक वाद्ययंत्र। इनमें से लगभग 650 उपकरण आज भी जीवित हैं। इसके अलावा, स्ट्राडिवरी को श्रद्धांजलि में हजारों वायलिन बनाए गए हैं, उनके मॉडल की नकल करते हुए और “स्ट्राडिवेरियस” पढ़ने वाले लेबल वाले लेबल। इसलिए, वायलिन में स्ट्रैडिवेरियस लेबल की उपस्थिति का इस बात पर कोई असर नहीं पड़ता है कि उपकरण स्वयं स्ट्राडिवरी का वास्तविक काम है या नहीं।
सामान्य लेबल, चाहे वास्तविक हो या गलत, लैटिन शिलालेख एंटोनियस स्ट्राडिवेरियस क्रेमोनेंसिस फेसिबैट एनो [तारीख] का उपयोग करता है। यह शिलालेख निर्माता (एंटोनियो स्ट्राडिवरी), शहर (क्रेमोना) और “वर्ष में निर्मित” को इंगित करता है, जिसके बाद एक तिथि मुद्रित या हस्तलिखित होती है। 1891 के बाद बनाई गई प्रतियों में लेबल के नीचे अंग्रेजी में मुद्रित मूल देश भी हो सकता है, जैसे “मेड इन चेकोस्लोवाकिया,” या बस “जर्मनी।” आयातित वस्तुओं पर संयुक्त राज्य अमेरिका के नियमों द्वारा 1891 के बाद इस तरह की पहचान की आवश्यकता थी।

19वीं सदी में 17वीं और 18वीं सदी के महान इतालवी उस्तादों के उत्पादों की सस्ती प्रतियों के रूप में हजारों-हजारों वायलिन बनाए गए थे। मास्टर के नाम के साथ एक लेबल चिपकाने का उद्देश्य क्रेता को धोखा देना नहीं था, बल्कि उस मॉडल को इंगित करना था जिसके चारों ओर एक उपकरण बनाया गया था। उस समय, क्रेता को पता था कि वह एक सस्ता वायलिन खरीद रहा है और उसने लेबल को उसकी व्युत्पत्ति के संदर्भ के रूप में स्वीकार कर लिया। जैसे-जैसे लोग आज इन उपकरणों को फिर से खोजते हैं, यह ज्ञान खो जाता है कि वे कहाँ से आए हैं, और लेबल भ्रामक हो सकते हैं।

एक वायलिन की प्रामाणिकता (यानी, चाहे वह उस निर्माता का उत्पाद हो जिसका लेबल या हस्ताक्षर उस पर है) केवल डिजाइन, मॉडल लकड़ी की विशेषताओं और वार्निश बनावट के तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से निर्धारित किया जा सकता है। यह विशेषज्ञता सैकड़ों या हजारों उपकरणों की परीक्षा के माध्यम से प्राप्त की जाती है, और एक अनुभवी आंख का कोई विकल्प नहीं है।

Violin History Facts

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सार्वजनिक पूछताछ सेवाओं, स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन के सहयोग से संगीत, खेल और मनोरंजन विभाग द्वारा तैयार किया गया।


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