Raag Parichay || Raag Parichay in Hindi || Indian Raga Notes || Raag Malgunji

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राग श्री


कोमल रिघ तीवर नियम परि संवादी वादी |
घम बरजे आरोहि में, यह श्रीराग अनादि ||


राग श्री को पूर्वी थाट से उत्त्पन्न माना गया है। इसमें ऋषभ – धैवत कोमल,मध्यम तीव्र व शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में ग – ध वर्ज्य और अवरोह में सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं,इसलिए इसकी जाती गायन – समय सायंकाल सर्यास्त के समय है।
या गंभीर प्रकृति का प्राचीन राह है। इसका उल्लेख सभी प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।यह अवश्य है कि राग के प्राचीन और आधुनिक स्वरुप में भिन्नता है। आधुनिक स्वरुप के वादी – सम्वादी में संवाद – भाव नहीं है। कारण यह कि वादी स्वर कोमल ऋषभ है। रे_ – प में सम्वादी भाव न होते हुये भी इनका मींड युक्त प्रयोग को भला लगता है जिस प्रकार मारवा राग के वादी – सम्वादी स्वरों में सम्वादी भाव न होने के कारण उसे राग – नियम का अपवाद मान लिया गया है, उसी प्रकार राग श्री के वादी – सम्वादी स्वरों को भी अपवाद मान लिया गया है,राग मारवा के सामान इसे भी सांयकालीन सन्धिप्रकाश राग माना गया है।
पूर्वी थाट के अनेक राग श्री अंग से प्रभावित है।इस राग की गंभीरता स्वरों के मिडंयुक्त गायन – वादन में निहित है। यह स्वतंत्र राग है। स्वरों के सही उच्चारण से यह अन्य रागों से अलग रहता है।

आरोह – अवरोह

Aalap

Taan

राग श्री त्रिताल (मध्य लय)


राग मालगुंजी (Raag Malgunji)

राग मालगुंजी के मुख्य स्वर हैं; रे, नि॒, सा, रे, ग, म। इनसे इस राग का प्रारम्भिक दर्शन हो जाता है। इस राग को राग रागेश्वरी और राग बागेश्री का मिश्रण माना जाता है। आरोह में कहीं-कहीं रागेश्वरी तो अवरोह में कहीं-कहीं बागेश्री का आभास होता है। संगीत मार्तण्ड पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के मतानुसार इस राग की प्रकृति न गम्भीर है और न तरल है। वैचारिक अन्तर्द्वन्द्व, उलझन की स्थितियों में इस राग के स्वर संवेदनात्मक रूप में प्रेरणा तथा मनोबल को सुदृढ़ करने के साथ-साथ उन कष्टदायक स्थितियों का समाधान करने में सहयोगी सिद्ध हो सकते हैं। उलझनों तथा मानसिक अन्तर्द्वन्द्व की स्थितियों के साथ-साथ इनके प्रभावानुसार उत्पन्न मनोभौतिक समस्याओं; उच्चरक्तचाप का बढ़ना, भूंख न लगना, अनिद्रा आदि का उपचार इस राग से सम्भव हो सकता है। राग मालगुंजी के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम आपके लिए मैहर घराने के संस्थापक उस्ताद अलाउद्दीन खाँ का वायलिन वादन प्रस्तुत कर रहे हैं। यू-ट्यूब के सौजन्य से प्रस्तुत इस दुर्लभ वीडियो का अब आप रसास्वादन करें।राग मालगुंजी का सम्बन्ध काफी थाट से माना जाता है। इसमें दोनों गान्धार और दोनों निषाद प्रयोग किये जाते हैं। शुद्ध निषाद का प्रयोग अति अल्प किया जाता है। अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। आरोह में पंचम स्वर वर्जित होता है और अवरोह में सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इसलिए यह षाडव-सम्पूर्ण जाति का राग है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। इस राग के गायन-वादन का अनुकूल समय रात्रि का दूसरा प्रहर है। सामान्यतः आरोह में शुद्ध गान्धार और शुद्ध निषाद तथा अवरोह में कोमल गान्धार और कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। शुद्ध निषाद का अति अल्प प्रयोग केवल तार सप्तक के साथ आरोह में किया जाता है। मन्द्र सप्तक के आरोहात्मक और अवरोहात्मक दोनों प्रकार के स्वरों में कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। कुछ विद्वान केवल कोमल निषाद प्रयोग करते हैं, शुद्ध निषाद लगाते ही नहीं। पंचम स्वर आरोह में वर्जित है और अवरोह में अल्प है। धैवत से मध्यम को आते समय पंचम का कण लिया जाता है। शुद्ध निषाद का अल्पत्व, कोमल निषाद की अधिकता, मध्यम स्वर का बहुत्व और पंचम स्वर का अल्पत्व तथा लगभग राग बागेश्री के समान चलन होने के कारण इसे बागेश्री अंग का राग कहा जाता है। राग मालगुंजी का वादी-संवादी क्रमशः मध्यम और षडज होने के कारण इसे रात्रि 12 बजे के बाद गाना-बजाना चाहिए, किन्तु इसे रात्रि 12 बजे से पूर्व गाया-बजाया जाता है। अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं; राग मालगुंजी पर आधारित एक फिल्मी गीत। इसे हमने वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म “छोटे नवाब” से लिया है। लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत उस गीत के संगीतकार राहुलदेव बर्मन हैं। आप यह गीत सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

Raag Malgunji Aaroh Avroh

Raag Malgunji (त्रिताल (मध्य लय)

Raag Malgunji Taan

Raag Malgunji Aalap


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