Punjabi Lokgeet || Punjabi Sanskar

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पंजाब देश की उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित एक राज्य है। चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त प्रशासनिक राजधानी है। पंजाब का कुल क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है। राज्य का सबसे बड़ा शहर लुधियाना हैं। पंजाब के अन्य प्रमुख नगरों में अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, पटियाला, नवांशहर, आनंदपुर साहिब और बठिंडा हैं। पंजाब’ शब्द फारसी के ‘पंज’ जिसका अर्थ होता है ‘पांच’ और ‘आब’ जिसका अर्थ होता है ‘पानी’ के मेल से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘पांच नदियों का क्षेत्र’ है। इसलिए इसे पाँच नदियों की भूमि भी कहा जाता है। ये पांच नदियां हैं- सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम।पंजाब सीमांतवर्ती प्रान्त है। यहाँ के लोग युद्ध के समय सदैव ही प्रहरी की भाँती देश की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं। शांति के समय लोकगीतों एवं नृत्य के द्वारा हर्षोल्ला के साथ अपना समय व्यतीत करते हैं। लोकसंगीत किसी भी संस्कृतिका महत्त्वपूर्ण अंग है।
लोकगीत और उसका गायन जान -साधारण के हृदय में स्थित भावनाओं की अभिव्यंजना का सरलतम माध्यम है। प्रत्येक प्रान्त का अपना स्वतन्त्र लोकसंगीत है।
पंजाब का लोकसंगीत अपनी विशेषताओं के कारण ही समस्त भारत में लोकप्रिय है। इसी पंजाब क्षेत्र के टप्पा, माहिआ, मिर्जा साहिबा, हीर, ढोलक के गीत, बारहमासा गीत, बोलिओं आदि की लोकप्रियता समस्त भारत में है।
पंजाब का लोकसंगीत अपनी मधुर धुनों एवं आसाधारण भावगर्भिता के कारण जान – साधारण के मन को मोह लेता है।
यह गीत किसी व्यक्ति विशेष द्वारा तो रचे नहीं जाते, यह तो स्वतः ही भावों के अनुरूप बोक बनकर निकल पड़ते हैं, जो लोक धुनों में आबध्द होकर लोकगीत कलाते हैं।
पंजाबी ;लोकगीतों की लोकप्रियता के कारन ही इन्हें फिल्म संगीत में भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पंजाब की हीर अपनी विशेष हृद्यदस्पर्श स्वर सगतियों के कारन समस्त भारत में लोकप्रिय है तथा यहाँ के टप्पा, बोलिआं आदि गीत अपनी मस्ती एवं चंचलता से जन – साधारण के मन को मोह लेता है।

बारहमासा गीत

इसके अंतर्गत पंजाब के पर्वों, त्यौहारों और ऋतुओं से संबन्धित लोकगीत आते है। इन बारहमासा गीतों में बारह माह का प्राकृतिक वर्णन होता है, इसमें सर्दी, गर्मी, बरसात आदि ऋतुओं का मानव मन पर उसके प्रभाव का निरूपण किया जाता है। इसमें ऐसे गीत होते हैं, जिनमे ऋतु के अनुसार सहित,ग्रीष्म और वर्षा का शब्द स्पष्ट होता है।
मनुष्य का प्रकृति से घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रत्येक ऋतु अपनी नई सज – धज, शोभा – शृंगार के साथ फल – फूलो की सौगात लिए आते हैं। मानव मन इसी प्राकृतिक छटा का लोकगीतों के माध्यम से वर्णन कर आनंद लेते हैं। जिसमे हरियाली से परिपूर्ण गीतों का वर्णन होता है।

पंजाबी संस्कार (Punjabi Sanskar)

भारत में प्रायः सभी अँचलों में प्रत्येक धर्म के अपनी कुछ विशेष संस्कार होते हैं। ये संस्कार मानव जीवन में जन्म से लिकर मृत्यु के बिच में घटित विभिन्न आयामों के साथ जुड़े होते हैं। ये संस्कार हर्ष एवं उल्लास पर्वों पर होते हैं। संस्कार गीतों में विवाह के अवसर पर वर – पक्ष द्वारा गाया जाने वाला गीत का प्रकार है – घोड़िआँ।
विवाह के समय प्रस्थान करते समय वर को घोड़ी पर सवार की प्रथा है। इन गीतों में प्रायः इस दृश्य का वर्णन होता है तथा वर सम्बन्धी स्वजन अपने हृदय के उदगार इन गीतों में निरूपित करते हैं।
सिट्ठिनी पंजाब का हास्य से परिपूर्ण गीत है,जो विवाह के अवसर पर और अधिक रंगीन वातावरण प्रदान करते हैं। यह गीत स्त्रियाँ तथा नवयुवतियाँ सामूहिक रूप से जाती है। इसमें दाम्पत्य जीवन का अत्यन्त मनोरम एवं भावपूर्ण चित्र प्रस्तुत है।

छत पंजाबी गीत

इसका सम्बन्ध विवाह गीत से हिअ। इसमें मुंदावाणी का अर्थ है – बुझारत अकाउणी, जिसमे भाव या अर्थ गुप्त रूप बंद करके या छिपा कर रखा हो। ऐसी बात जो जल्दी से किसी के समझ में न आए वही मंदवाणी की रात है। इसके अनुसार जब बाराती खाना खाने बैठते हैं,तो लड़कियाँ बुझारत गाकर थाली बाँध देती है
यह बुझल जाए अर्थात बाराती द्वारा पहेली समझ जाने पर वे खाना खाते हैं। छत पंजाबी काव्य का अंग है। यह गीत विवाह के अवसर पर लाड़ा अपनी सहेलियों को सुनाता है। परम्परा में चले आते हुए छत पंजाबी लोकगीत का प्रचलित प्रकार है।

टप्पा गीत

पंजाब सीमांत प्रांत है, जहाँ पर ऊँट पर यात्रा की जाती थी। अतः रागीर ऊँट की तापों की ले पर अपने हृदय के उदगारों को अभिव्यक्त करने लगे जो कालांतर में टप्पा के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन टप्पों की रचना सर्वपर्थम,किसने की किसने बोल और स्वर दिए ये नही कहा जा सकता, क्योकि ये गीत एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को विरासत में प्राप्त हुए हैं।
इन टप्पों में जवानी की उमंगों, प्रिय की मिलान की उत्कण्ठा, वियोग आदि की अपेक्षा हास – परिहास एवं व्यग्य का वर्णन अधिक होता है। यह गीत मस्ती से भरपुर होते हैं। यह समूह में गाया जाने वाला गीत है।

ढोला गीत

पंजाब का ढोला गीत ग्रामीण गायक अपनी सीधी – साधी सरल धुनों में गाते हैं। ढोला शब्द प्रिय के अर्थ में होता है।

बोलीआं

यह पंजाबी लोक साहित्य का अत्यंत प्राचीनकालीन रूप है। बोलीआ की विषय – वस्तु व्यंग्य व छोटा – काशी होती है। यह छोटी – छोटी भावनाओं की मर्मस्पर्शिता के अत्यधिक लोकप्रिय है।

हिंदी भाषा में इसे बोली मारना कहते हैं। गिद्दा व भाँगड़ा आदि लोकनृत्य का बोलिआं से घनिस्ट सम्बन्ध पाया जाता है। पंजाब में खेती व्यवसाय पर अधिक बल दिया जाता है। लोग फसल के कटने पर लोकगीतों को गाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। यहाँ अनेक पर्व हर्षोउल्लास के साथ गा – बजाकर मनाए जाते हैं। पंजाब में लोकगीतों का बहुत प्रचलन है। यहाँ की जनता लोकसंगीत के प्रति बहुत आकर्षित रहती है।

पंजाब लोकवाद्य (Punjabi Lok Vadya)

गिद्दा-भंगड़ा पंजाब की युगों पुरानी प्राचीन धरोहर रहा। माना जाता है कि महाभारत काल से ही इस भू-भाग पर महिला-पुरुष मण्डल बना कर ढोल की थाप पर नाचते हैं और बोलियां डालते हैं। महिलाओं के नाच को गिद्दा व पुरुषों के नाच को भंगड़ा कहा जाता है।पंजाब यह भारत के उत्तर पच्छिमी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण राज्य है। पंजाब का जब नाम लिया जाता है तब सब के दिल में वहा का लोकप्रिय लोकनृत्य भांगड़ा और उसमे बजने वाला ढोल की आवाज मन ही मन में गूंजने लगती है और हर कोई उसपर झुमने लगता है। पंजाब का यह लोकनृत्य केवल भारत में ही नही बल्कि पुरे विश्व में अपनी अलग शैली के कारण मशहूर है। पंजाब में भांगड़ा के अलावा गिद्दा, झुमर, भांड, डफ, नकाल जैसे कई सारे लोकनृत्य और लोकनाट्य है जिसमे लोकवाद्यों का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी राज्य के लोकसंगीत में लोकवाद्योंकी अहम् भूमिका होती है।

ढोलक

अगर देखा जाये तो ढोलक यह वाद्य उत्तर भारत के सभी प्रान्तों में लोकसंगीत में प्रयुक्त होनेवाला मशहूर वाद्य है। संगीत क्षेत्र में कार्यरत लगभग सभी विद्वान् , अनुसंधानकर्ता इनका मानना है की, वैदिक काल में प्रयुक्त होने वाला पटह इस वाद्य का परिवर्तित रूप ढोलक में समाया है।

तुम्बी

तुम्बी यह पंजाब का एक लोकवाद्य है जो तार/ततवाद्य वाद्य वर्गीकरण के श्रेणी में आता है। यह वाद्य भांगड़ा इस लोकनृत्य और पंजाबी लोकसंगीत में प्रयुक्त होता है। तुम्बी को बनाने के लिए कद्दू, बास की लकड़ी, बकरी का कमाया हुआ चमड़ा, तार, लकड़ी की खूंटी आदि सामग्री इस्तमाल होती है। तुम्बी की लगभग 20 से 21 इंच तक होती है यह वाद्ययंत्र हाथ से बनाया जाता है तो हाय , में थोड़ा बहुत फर्क होता है। यह वाद्य पंजाब के प्रसिद्ध लोककलाकार गायक लाल चंद यमला जट्ट ने बनाया है। 1950-60 से लेकर अबतक यह वाद्य पंजाब के लोकसंगीत को सजा रहा है। एक तार वाले तंतु वाद्योंकी की एक अलग ही खासियत होती है की एक ही तार पर सात सुरों को निर्माण होता है, मतलब गानेवाला, भाषण देनेवाला(गायनशैली) तार को अपनी गायकी नुसार उसे tune करता है।

इस वाद्य वर्गीकरण श्रेणी में आता है। सूफी- फ़क़ीर, नाथ संप्रदाय के साधू इनके भक्तिसंगीत में चिमटे का प्रमुखता से प्रयोग होता है। पंजाब के लोकसंगीत जैसे की, भांगड़ा लोकनृत्य, धार्मिक संगीत, गुरबानी कीर्तन इन सब पंजाबी लोकविधाओं में चिमटा इस वाद्य का उपयोग ताल के लिए होता है।

चिक्का

साप या जिसे चिक्का भी कहाँ जाता है ऐसा एक अनोखा वाद्ययंत्र पंजाब के भांगड़ा, गिद्दा जैसे लोकनृत्य में प्रयुक्त होता है। इसमे लकड़ी की पट्टियाँ स्क्रू की सहायता से एक दुसरे को जुडी होती है, दोनों हाथों से खिंचकर एक दुसरे से टकराकर बजाने से इसमे से ध्वनी निकलती है। गरबा नृत्य में 10 लकड़ी की डांडिया टकराने से जितनी ध्वनी निकलती है उतनी ध्वनि तो इस एकेले साप वाद्य से निकलती है। भांगड़ा नृत्य में ढोल, चिमटा इन वाद्यों के साथ साप वाद्य की ध्वनी अपनी ताल से और मिठास भर देती है।
आदि वाद्य पंजाब के लोकसंगीत में प्रचलित है। लोकसंगीत हमारी सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता बनाए रखने में सहायक होते है, इनका अब हनन हो रहा है।


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