Shastriya Sangeet || CLASSICAL MUSIC || Hindustani Classical Music || Music Genre|| कर्नाटक शैली || Hindustani Shastriya Sangeetha || Hindustaanee Gaayan Shailee Ke Pramukh Roop

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शास्त्रीय संगीत (Classical Music)

वाद्य संगीत में शास्त्रीय , उपशास्त्रीय एवं वादन नृत्यों का महत्वपूर्ण स्थान है। वाद्य संगीत के आभाव में गायन पूर्ण रूप से रसयुक्त नहीं हो सकता यही। संगीत के लय एवं ताल को सौंदर्याता प्रदान करने के लिए तिहाईयों का महत्वपूर्ण योगदान है। तिहाई में मात्राओं का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है तिहाई की अपनी क्षमता के अनुसार की जाती है। शास्त्रीय संगीत ,संगीत का वह रूप है ,जिसमे गाने की कलात्मकता व एक विशेष पद्धति से संबध्दता होती है। यह एक अनुशासित संगीत प्रणाली है,जिसमे शास्त्र के नियमो का बंधन है। राग भारतीय शास्त्रीय संगीत का महत्वपूर्ण तथा प्रधान विषय है जिसका सम्बन्ध सौंदर्य से जुड़ा हुआ है। वास्तविक रूप में भारतीय शास्त्रीय संगीत में शब्द की प्रधानता न होकर स्वर की प्रधानता होती है राग पर आधारित शास्त्रीय संगीत की एक विशेषता तान है ,शास्त्रीय संगीत का अपना शास्त्र पक्ष होता है जिसके अपने नियम पद्धति होती है। उसका शास्त्रीय पक्ष व्यक्तिनिष्ठ होते हुए भी समाज की सौंदर्य रंजन एवं रसानुभूति देता रहता है। 

ऐसा संगीत जिसका शास्त्र निष्चित है अर्थात शास्त्र पर आधारित वह संगीत जिसमे लय ,ताल के आधार पर स्वर का संयोजन किया जाता है। इसमें रागों के नियमो का पालन करना आवश्यक है तथा रंजकता हेतु नियमों को शिथिल करने का अधिकार नहीं होता है। भारत में शास्त्रीय संगीत की दो विधाएँ प्रचलित है -उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत  एवं दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत है। दोनों संगीत वधा भिन्न -भिन्न तथा अपने शास्त्र पर आधारित है। स्वर एक होने के बावजूद भी दोनों शैलियों में रागों का नामकरण पृथक है। राग प्रस्तुतीकरण का ढंग भिन्न है एवं ताल शास्त्र के नियम भी पृथक है। 

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्र्यों ने इसे पंचम वेद या गंधर्व वेद की संज्ञा दी है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र पहला ऐसा ग्रंथ था जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्र्यों ने इसे पंचम वेद या गंधर्व वेद की संज्ञा दी है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र पहला ऐसा ग्रंथ था जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा जटिल व संपूर्ण संगीत प्रणाली माना जाता है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की शैलियां(Music genre)

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख शैलियां निम्नलिखित हैं-

हिंदुस्तानी शैली(Classical Music Of India)

हिंदुस्तानी शैली के प्रमुख विषय ऋंगार, प्रकृति और भक्ति हैं। तबलावादक हिंदुस्तानी संगीत में लय बनाये रखने में मदद देते हैं। तानपूरा एक अन्य वाद्ययंत्र है जिसे पूरे गायन के दौरान बजाय जाता है। अन्य वाद्ययंत्रों में सारंगी व हरमोनियम शामिल हैं। हिंदुस्तानी शैली पर काफी हद तक फारसी संगीत के वाद्ययंत्रों और शैली दोनों का ही प्रभाव है।

कला एवं संस्कृति

भारतीय शास्त्रीय संगीत(Music genre)

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्र्यों ने इसे पंचम वेद या गंधर्व वेद की संज्ञा दी है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र पहला ऐसा ग्रंथ था जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।

 शास्त्रीय संगीत

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्र्यों ने इसे पंचम वेद या गंधर्व वेद की संज्ञा दी है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र पहला ऐसा ग्रंथ था जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा जटिल व संपूर्ण संगीत प्रणाली माना जाता है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की शैलियां

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख शैलियां निम्नलिखित हैं-

हिंदुस्तानी शैली

हिंदुस्तानी शैली के प्रमुख विषय ऋंगार, प्रकृति और भक्ति हैं। तबलावादक हिंदुस्तानी संगीत में लय बनाये रखने में मदद देते हैं। तानपूरा एक अन्य वाद्ययंत्र है जिसे पूरे गायन के दौरान बजाय जाता है। अन्य वाद्ययंत्रों में सारंगी व हरमोनियम शामिल हैं। हिंदुस्तानी शैली पर काफी हद तक फारसी संगीत के वाद्ययंत्रों और शैली दोनों का ही प्रभाव है।

हिंदुस्तानी गायन शैली के प्रमुख रूप

ध्रुपद: ध्रुपद गायन की प्राचीनतम एवं सर्वप्रमुख शैली है। ध्रुपद में ईश्वर व राजाओं का प्रशस्ति गान किया जाता है। इसमें बृजभाषा की प्रधानता होती है।

खयाल: यह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे लोकप्रिय गायन शैली है। खयाल की विषयवस्तु राजस्तुति, नायिका वर्णन, श्रृंगार रस आदि होते हैं।

धमार: धमार का गायन होली के अवसर पर होता है। इसमें प्राय: कृष्ण-गोपियों के होली खेलने का वर्णन होता है।

ठुमरी: इसमें नियमों की अधिक जटिलता नहीं दिखाई देती है। यह एक भावप्रधान तथा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधान गीत है। इस शैली का जन्म अवध के नवाब वाजिद अली शाह के राज दरबार में हुआ था।

टप्पा: टप्पा हिंदी मिश्रित पँजाबी भाषा का श्रृंगार प्रधान गीत है। यह गायन शैली चंचलता व लच्छेदार तान से युक्त होती है

कर्नाटक शैली

कर्नाटक शास्त्रीय शैली में रागों का गायन अधिक तेज और हिंदुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है। त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की त्रिमूर्ति कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। कर्नाटक शैली के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल हैं।

कर्नाटक गायन शैली के प्रमुख रूप

वर्णम: इसके तीन मुख्य भाग पल्लवी, अनुपल्लवी तथा मुक्तयीश्वर होते हैं। वास्तव में इसकी तुलना हिंदुस्तानी शैली के ठुमरी के साथ की जा सकती है।

जावाली: यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। भरतनाट्यम के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफी तेज होती है।

तिल्लाना: उत्तरी भारत में प्रचलित तराना के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है।


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