राग बसंत का तान || RAAG BASANT KA TAAN || TAAN

शेयर करें |

तालबद्ध तानें 

भरतमुनि कृत नाट्यशास्त्र में तान की व्युतपत्ति इस प्रकार बताई गई है 

तनोति विस्तार धञि तान इति स्मृतः। 

रागा यैस्तन्यते प्रायः स्वरास्तें तानका मताः।।  “

अर्थात तान शब्द संस्कृत के तन धातु में धञि प्रत्यय लगने से निष्पन्न होता है जिसका अर्थ है – तानना या विस्तार करना। जिन स्वरों के द्वारा राग विस्तार किया गया है , उन्हें तान कहते हैं। 

तानों के ऐतिहासिक क्रम 

सर्वप्रथम नारदीय शिक्षा में तान शब्द का उल्लेख मिलता है। नारदीय शिक्षा के चौथे श्लोक से ज्ञात होता है कि सप्त स्वर 3 ग्राम तथा 49 तान की परम्परा उस समय भी थी। 

न्यायदेव के अनुसार ,देवों की आराधना (यज्ञ ) के लिए तानेंकही है , जो पुण्य के उत्पादन हेतु है। 

तानों की आवश्यकता 

तान से गीत का विस्तार होता है साथ ही वैचित्र्य की सृष्टि होती है। मात्रा एक प्रकार की तान से इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती। अतः उद्देश्य पूर्ति हेतु अनेक प्रकार की तानो का होना आवश्यक होता है। 

किसी राग में लगने वाले स्वर को ध्यान में रखते हुए , अनेक ताने बनाकर तान रूप आभूषण से राग को विभूषित किया जाता है। 

विणा से तान की क्रिया दो प्रकार से होती है – प्रवेश या निग्रह। प्रवेश में ध्वनि की एकता अथवा स्वर साम्यता और निग्रह में स्पर्शहीनता अथवा मुक्त वादन होता है। 

तानों के प्रकार 

संगीत रत्नाकर के अनुसार , तानो के प्रकारों का वर्णन निम्न्लिखित है 

सपाट तान- इसमें सीधे -सीधे एक -एक स्वर को बढ़ाते हैं और आरोह के बाद अवरोह करते हैं।

फिरत की तान – इसमें स्वरों के आरोही – अवरोही दोनों कर्म रहते हैं। 

बढ़त की तान – कुछ लोग फिरत की तान से इस तान का सम्बन्ध जोड़ते हैं , इसमें एक -एक स्वर की बढ़त मध्य सप्तक के स से षु शुरू करके तार व मंद्र स्थान दोनों की ओर की जाती है। 

 रागांग तान – यह तान तार सप्तक से प्रारम्भ होकर , मध्य सप्तक की ओर आती है , इसे अंतरे की तान भी कहते हैं। 

आलंकारिक तान – इन तानों का निर्माण अलंकारों का आश्रय लेकर किया जाता है। जिस तान में कई अलंकारों का प्रयोग होता है , उसे आलंकारिक या मिश्र तान भी कहते हैं।

गमक तान – इनमें स्वरों का उच्चारण गमक के साथ होता है। 

जबड़े की तान – इसमें स्वरों का उच्चारण जबड़ा हिलाकर किया जाता है। 

हलक की तान – इसमें स्वरों के  उच्चारण में तालु का पिछला हिस्सा अधिक प्रयुक्त होता है। अर्थात जीभ को क्रमानुसार भीतर बाहर चलाते हुए गाते हैं। यह तान गमक से कम जोरदार होता है। 

मिंड की तान – इसमें मिंड से स्वर लंघन होता है ; जैसे – सा म ग प म ध प नि। 

छूट की तान – इस तान में गायक या वादक किसी प्रकार की आलंकारिक अथवा सपाट तान का आरोह करते – करते तार सप्तक में जब राग के वादी – संवादी स्वर पर पहुंचकर एक – दम वही स्वर मध्य सप्तक में पकड़कर तान के मध्य सप्तक में कहता है , तो यह छूट की तान होती है। 

बोल तान – जब गीत के बोलों को कहते हुए राग का विस्तार करते हैं , तो उसे बोल तान कहते हैं। 

बोल -बाँट की तान झटके की तान – इसमें बोल तान के साथ – साथ बंदिश की लय तथा स्वरों के सहारे से बाँट भी लिए जाते हैं। अर्थात दूनी चाल में अचानक चौगुन की जाने लगे। 

वक्र तान – इस प्रकार की ताने वक्र आलंकारिक गति से चलती है – ग रे , म ग  , प म ध प , नि ध सां 

खटके की तान – स्वरों पर धक्का – सा लगाते हुए जो तान लेते हैं ,वह खटके की तान कहलाती है। 

कूट तान – इसमें के फेर – बदल अर्थात टेढ़े – मेढ़ेपन से विभिन्न स्वर समूहों की रचना होती है ;जैसे – सा रे ग रे ध प म प रे ग म प ध प म प ध सां। 

अचरक तान – जिस तान में प्रत्येक दो स्वर एक से बोले जाएँ ;जैसे –  सासा ,रेरे ,गग ,मम ,पप ,धध। इसे अचरक की तान कहते हैं। 

सरोक तान – जिस तान में चार -चार स्वर एक साथ सिलसिलेवार कहे जाएँ ;जैसे – सारेगम ,रे ग म प ,गम प ध ,म प ध नि आदि। 

लड़न्त की तान जिस तान में सीधी – आडी कई प्रकार की लय मिली हुई हो उसे लडन्त की तान कहते हैं। लडन्त की तानों में गायक और वादक की लडन्त बड़ी मजेदार होती है। 

सपाट तान – जिस तान में क्रमानुसार स्वर तेजी के साथ जाते हो , उसे सपाट तान कहते हैं। 

गिटकारी की तान – दो स्वरों को एक साथ ,शीघ्रता से एक के पीछे दूसरा लगते हुए यह तान ली जाती है। 

इन कुछ स्थानों के अलावा भी कई तान है जो  संगीत में प्रयोग की जाती है गायन की सुंदरता बढ़ाने के लिए  ही तानो का प्रयोग किया जाता है इनमें कुछ ताने ऐसी होती है जो केवल गायन के साथ प्रयोग की जाती है और कुछ ताने ऐसी भी होती है जो केवल वादन के साथ प्रयोग की जाती है और कुछ ऐसी होती है जो दोनों परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है परंतु इन तानों का उद्देश्य गायन और वादन की सुंदरता को बढ़ाना ही होता है

तान – राग के स्वरों को तरंग या लहर के समान, न रुकते हुए, न ठिठकते हुए सरस लयपूर्ण स्वर योजनाएं तरंगित की जाती हैं वे हैं तानें। मोती के दाने के समान एक-एक स्वर का दाना सुस्पष्ट और आकर्षक होना चाहिये, तभी तान का अंग सही माना जाता है।

सडार वाणी को सस्कृत में “भिन्नागीति” कहा गया है| इस वाणी में स्वर के भिन्न-भिन्न टुकडे करके गाते हैं। सम्भवत इसीलिये सस्कृत मे इमको ‘भिन्ना’ कहा जाता है । स्वर के सड-सड होने के कारण हिन्दी में इसको सडार वाणी कहा गया है । दोनों शब्दो का मूल तात्पर्य एक ही है । घर को सरल भाव में प्रगट न करके कुटिल भाव मे सड-सड करके प्रकट करना ही खडार वाणी की विशेषता है । इस कृत्य मे स्वर की मधुरता का नाश नहीं होता, अपितु सूक्ष्म गमक की सहायता मे स्वर को आन्दोलित करने पर उसमे मधुरता की और भी वृद्धि होती है, इसलिये उत्तम गुणी गमक की सहायता से सडार वाणी गाते थे। यन्त्र सङ्गीत में वीणा द्वारा सण्डार वाणी का सैनी लोग विविध प्रकार से मध्यलय गमक व जोड़ मे उपयोग करते हैं । शुद्व वाणी की प्रधानता रवाव द्वारा दिसाई जाती थी, क्योंकि रवाव का स्वर सरल होता है। इसमें विलम्बित, मध्य और द्रुत ये विविध पालाप बापूवी दिसाये जा सकते हैं। वाणी का रहस्य जानने वाले गायक आजकल शायद ही कोई हों। ध्रुपद गायन यो प्रचलित हुए 500वर्ष से अधिक हो गये, किन्तु इवर लगभग 150वर्ष से ध्रुपद- गायकी का प्रचार कम होगया है और ख्याल गायन का प्रचार अधिक होगया है, इतना होते हुए भी सङ्गीतकला मर्मज्ञो मे ध्रुपद गायकी को अब भी श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। ख्याल फारसी भाषा में रयाल का अर्थ है, विचार या कल्पना । राग के नियमों का पालन करते हुए अपनी इच्छा या कल्पना से विविध आलाप तानों का विस्तार करते हुए, एकताल, त्रिताल, झूमरा आडा चौताल इत्यादि तालों में गाते हैं। रयालों के गीतों में शृङ्गार रस का प्रयोग अधिक पाया जाता है। रयाल गायकी में जलद तान, गिटकरी इत्यादि का प्रयोग भी शोभा देता है और स्वर वैचित्र्य तथा चमत्कार पैदा करने के लिये रयालों में तरह-तरह की ताने ली जाती हैं। ख्याल गायन में त्रुपद जैसी गभीरता और भक्तिरस की शुद्धता नहीं पाई जाती । ग्याल  प्रकार के होते हैं (1) जो विलम्बित लय में गाये जाते हैं, उन्हें बहुधा बडे रयाल कहते हैं और (2) जो द्रुत लय मे गाये जाते हैं उन्हे छोटे रयाल कहते हैं।


शेयर करें |

You may also like...

3 Responses

  1. Arun Pandit says:

    In addition to the deep grammar depiction of various raag which are immensely informative to the students I request you to add some voice recordings in the form of sargam geet or bandishes with alap and taans.

  2. Mark says:

    Thanks for your blog, nice to read. Do not stop.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *