वाद्यों के प्रकार ||TYPES OF INSTRUMENTS || CLASSICAL MUSIC

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 वाद्यों के प्रकार 

गीत वाद्य नृत्यम ऐसी संगीत की व्याख्या पुराने संगीतकरों के जमने से चली आ रही है। प्राचीन काल से गायनकला के साथ -साथ वादन कला भी प्रचार में थी। 

वाद्यनिर्मिती की ऐतिहासिक पाश्र्वभूमि 

वाद्यनिर्मिती  का काल आदि काल माना गया है। आदिमानव जिन वस्तुओ को उपयोग में लाता था वही वाद्य निर्मिति का उगम माना जाए ,तो गलत नहीं होगा। इन वस्तुओ पर एक  ऊपर एक आघात से घणवद्य बने। धनुष्य के तनत्कार से तंतुवाद्य निर्मित हुए। तथा प्राणीके चमड़े से वाद्य की कल्पना अस्तत्व में आयी। बंबू में खोकले (पोकल)माध्यम से हवा निकलने से ध्वनि उत्पन्न होती है ,इससे सुषित वाद्य की कल्पना सूझी। प्राचीन काल से ही वाद्यवादन अस्तित्व होने का प्रमाण मिलता है। सामगायान के साथ वेणुवादन होता था भरतमुनि के नाट्यशास्त्र ग्रन्थ में गायक के साथ वीणावादक ,झंझवादक ,मृदंगवादक का उल्लेख मिलता है। रामायण महाभारत में शंख ,घंटा,भेरी ,दुंदुभि ,आदि वाद्यों का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में भी कण्डविणा ,कारकारीविणा भृदुदुंभी ,आदि वाद्य पाये जाते हैं। देव देवताओं से भी वाद्य का सम्बन्ध पाया जाता है संकर के हाथ माँ डमरू ,विद्या की देवी सरस्वती के के हाथ में विणा ,श्रीकृष्ण के हाथ में बांसुरी देखा जाता है। 

वाद्य वर्गीकरण : 

अवनद्ध         चमड़े से ढके वाद्य 
घन (भरीव )आघात से बजनेवाले वाद्य 
तंतुवाद्य    तंतु अथवा तार वाद्य 
सुषिर वाद्य हवा  के माध्यम से बजनेवाले वाद्य 

(1 ) तंतुवाद्य :

इस प्रकार के मुख्यतः सरोद ,संतुर ,सारंगी ,सितार ,व्हायोलिन ,मेलोंडिन यह तारवाद्य तथा विणा ,तानपुरा दिलरुबा यह वाद्य आते हैं। 

 इसके उपप्रकार निम्नप्रकार से हैं-

बिना परदे के तारवाद्य  –   स्वरमंडल ,सरोद ,सारंगी ,संतुर इन वाद्यों का समावेश इस प्रकार में होता है। यह सभी वाद्य उंगली ,धनुकाली या तार पर काठी के आघात से बजायी जाते हैं। 

परदेवाले तारवाद्य    –    नखी से छेड़कर  तार परदे पर दबाकर बजने वाले वाद्य इस प्रकार में समाविष्ट होते हैं .उदा ,सितार, मेडोलिन ,विणा 

तारसंख्या के आधार पर :                                     

 एक तार   –   एकतारी

 चार तार   –   व्हायोलिन 

  छह या अनेक तार  – सरोद ,सितार ,संतुर 

(2) अवनध्द वाद्य :

      इन्हे तालवाद्य भी कहते हैं। चमड़े का उपयोग इन वाद्यों में प्रमुख रूप से होता है। 

उपप्रकार – 

दो मुखवाले वाद्य  –  पखावज ,मृदग ,ढोलक ,ढोलकी नाल। 

दो  मुख और रेत की घड़ी के आकारवाले वाद्य – डमरू

एक मुख वाले  – तबला, दग्गा ,नगारा ,चौघड़ा |

एक मुख चमड़े से ढका और दूसरी बाजू  से खुले वाद्य  –   खांजिरी ,डफ 

वादनपद्धती प्रकार 

दोनों मुख पर हाथ के आघात से बजनेवाले वाद्य :-

उदा ,तबला ,ढोलकी

एक मुखपर हाथ और दूसरे मुखपर काठी से प्रहार कर के बजनेवाले वाद्य :-

उदा ,ढोल

दोनों मुख पर काटी से प्रहार कर के बजने वाले वाद्य :-

उदा ,चौघड़ा ,ताशा 

 (3) घनवाद्य :

 घंटा ,चिपली ,टाल ,झांझ ,इन ,वाद्यों को इस प्रकार में अंतर्भूत किया गया है। 

उपप्रकार 

आकर भिन्नता से –   झांझ प्रकार  , घंटा प्रकार , चिपली प्रकार 

बजाने की भिन्नता से 

एक दूसरे के आघात से – टाल ,चिपली 

आघात से – घंटा , घटम 

हिलाकर – घुंघरू ,घंटी 

(4 ) सुषिर वाद्य :

 उदा ,बाँसुरी ,शंख , तुतारी ,पुंगी ,शहनाई

उपप्रकार – 

होंठ से फूँक मारकर – शंख ,शिंग ,तुतारी

मुख से फूँक मारकर – बाँसुरी

एकदल ,द्विदल ,जिभाली से – पुंगी ,नागस्वर ,शहनाई 

साथसंगत के वाद्य 

उदा , तानपुरा , स्वरमण्डल , व्हायोलीन , सारंगी , हार्मोनियम , तबला , घटम आदि। इसमें सिर्फ तानपुरा और स्वरमंडल का एकलवादन (Solo)नहीं हो सकता। 

स्वतंत्र वादन करनेवाले वाद्य :

सितार , सरोद ,शहनाई ,तबला, संतुर ,का एकलवादन सुगमगायन में या सिनेनाटय संगीत में उपयोग में लिया जाता है।


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1 Response

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