SANGEET PRCHAR || SANGEET विश्वविद्यालय || CLASSICAL MUSIC || इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय || Indira Kala Sangeet University ||

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संगीत प्रचार – प्रसार में संलग्न विश्वविद्यालय , अकादमी एवं संस्थान 

स्वाधीनता के उपरांत सांस्कृतिक विरासत के प्रति एक प्रकार की जागरूकता उत्पन्न हुई और जनसाधारण में सांस्कृतिक उत्तरदायित्व अनुभव किया की विद्यालय स्तर  पर भारतीय कला और सांस्कृतिक के विकास के लिये प्रभावी प्रयास किए जाएँ और इसी प्रयास का प्रतिफल है कि आज संगीत प्रचार – प्रसार में सलग्न अनेक विश्वविद्यालय , अकादमी एवं सम्बन्धित सस्थान भारत में संचालित हैं।  इन अकादमी एवं संस्थानों में संगीत संबंधित शिक्षण एवं प्रशिक्षण दिए जाते हैं तथा साथ ही शोध संबंधित कार्य भी किये जाते हैं 

संगीत वह माध्यम है , जिसके दूर मनुष्य आत्मानुभूति की प्राप्ति करता है।  यह केवल मनोरंजन का साधन मात्र नहीं है , बल्कि व्यक्तित्व के निर्माण में भी संगीत की अहम भूमिका निभाती है। संगीत की प्रसंगिकता को समझते हुए भारत में उच्चस्तरीय विश्वविद्यालय अकादमी एवं संस्थाएँ स्थापित की गई ,जिनका विवरण इस प्रकार है। 

गंदर्व महाविद्यालय 

सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हुए तथा अपने साथियों एवं सहयोगियों के प्रयास से पं विष्णुदिगम्बर जी ने लाहौर में 5 मई , 1901 को गंधर्व महाविद्यालय की स्थापना की।  भारतीय संगीत के पुरुत्थान में गन्धर्व महाविद्यालय की स्थापना एक बड़ी महत्वपूर्ण घटना थी 

धीरे – धीरे संगीत प्रचार कके साथ यह विद्यालय संगीत के शिक्षा का मुख्य केंद्र हो गया। समाज में सभी वर्गो में बड़े पैमाने पर संगीत के प्रचार का पूरा श्रेय इसी संस्थान को दिया जाना चाहिए। 

विद्यालय की सफलता से आश्वस्त होकर पं विष्णुदिगम्बर ने इस विद्यालय की अनेक शाखा खोलने का प्रयास किया , जिसमे इन्होने ;लाहौर की शिक्षण संस्था की एक शाखा के रूप में बंबई में वर्ष 1908 में गांधर्व महाविद्याल की स्थापना की। पं पलुस्कर के प्रयासों का परिणाम है कि आज भी मंडल निरंतर उन्नति कर रहा है।  

माधव संगीत विद्यालय 

संगीत के विकास में पं विष्णुदिगम्बर भातखण्डे ने संगीत की नियमबध्द ,कर्मबध्द एवं व्यवस्थित शिक्षा प्रणाली को जन – सामान्य के लिए सुलभ किया। भातखण्डे जी के द्वारा जनवरी 1918 में माधव संगीत विद्यालय की स्थापना की गई। ग्वालियर में संगीत शिक्षा का यह एकमात्र विद्यालय था कॉलेज ऑफ इंडिया म्यूजिक डाँस एण्ड डॉमिसिट्क बड़ौदा। 

संस्थागत शिक्षण प्रणाली द्वारा संगीत को जनजन तक सुलभ करने के उद्देश्य से श्रीमंत समाजीराव गायकवाड़ द्वारा बड़ौदा में वर्ष 1986 में एक  संगीत विद्यालय की नीव रखी गई।  यह विद्यालय कालांतर में बड़ौदा स्टेट म्यूजिक कॉलेज कलाया , जिसमे  गायन , वादन एवं नृत्य कला की शिक्षा नियमित व सुचारु रूपों से दी जाती है।  वर्तमान समय में इस अकादमी में संगीत संबन्धित अनेक शोधकार्य सहित विभिन्न विषयों पर व्याख्यान प्रस्तुत किए जाते हैं।

 हुबली आर्ट्स सर्कल (हुबली )

इस संस्था की स्थापना वर्ष 1944 में एस.एम. गोरा द्वारा जनता तथा संस्था के सदस्यों से अनुदान प्रदान करके की गई।  यह संस्था हुबली की संगीत प्रिय जनता के लिए संगीत के विख्यात कलाकारों के कायक्रमों का आयोजन करती है। 

वर्ष 1970 में इस सस्था ने रजत जयंती समारो मनाया था। द हुबली आटर्स सर्कल और अकादमी ऑफ परफ़ॉर्मिंग आटर्स मिलकर संगीत के कई सारे कार्यक्रमों का आयोजन करती है ;जैसे – संगीत की स्वरलिपि विषय पर संगोष्ठी , वर्ष 1986 में आयोजित सवाई गांधर्व जन्मशती समारोह ,वर्ष 1988 में डॉ.श्रीमती गंगूबाई हगल अमृत महोत्सब एवं वर्ष 1990 में संगीत  प्रोत्साहन पाठ्यक्रम आदि प्रमुख हैं। 

प्रयाग संगीत समिति 

भारतीय संगीत शिक्षा के प्रचार – प्रसार में पयाग संगीर समिती की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है।  इसकी स्थापना वर्ष 1926 में पं. विष्णुदिगम्बर पलुस्कर के शिष्य श्री बी. एल. कशलकर ने प्रयागराज में की थी। वर्त्तमान समय में यह मानिति अपना डिप्लोमा एवं प्रमाण – पात्र प्रदान करती है। विभिन्न गायन एवं वादन शैली  को विकसित करना इस समिति का मुख्य कार्य है। यह संस्थान मुख्य रूप से उत्तर भारतीय राज्यों में केंद्रित है।  इस संस्थान से अनेक नामचीन कलाकार हुए , जिन्होंने अपनी कला का लोहा मनवाया। 

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय

देश में संगीत के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले चुनिंदा विश्वविद्यालयों में से एक यह विश्वविद्यालय रोचक इतिहास और कलात्मक वर्तमान को अपने परिवेश में समेटे है। यह हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर का ध्वजवाहक भी है। खैरागढ़ विश्वविद्यालय से जुड़ी रोचक जानकारी दे रहे हैं शरद अग्रवाल

खैरागढ़ का इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय एशिया के उन कुछ चुनिंदा संस्थानों में से है, जो संगीत और कला को पूरी तरह समर्पित है। यह एशिया का पहला ऐसा संस्थान है, जो कला और संगीत में उच्च शिक्षा देने हेतु स्थापित किया गया। खैरागढ़ आजादी से पहले एक छोटी-सी स्वतंत्र रियासत हुआ करती थी, जहां के राजा बीरेंद्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती ने ही 1956 में इस विश्वविद्यालय की नींव रखी थी। इसकी स्थापना के लिए उन्होंने अपना राजभवन दान किया था। आज भी विश्वविद्यालय का कामकाज इसी भवन में होता है।

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के नाम को लेकर अक्सर लोगों में भ्रम रहता है कि इसका नाम देश की पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। इसका नाम खैरागढ़ के राजा बीरेंद्र बहादुर सिंह की बेटी इंदिरा के नाम पर है, जो कम उम्र में ही चल बसी थीं। वे संगीत की बहुत शौकीन थीं, जिस कारण इस विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया।

आज भी यहां गुरु-शिष्य परम्परा के बीज दिखाई देते हैं। संगीत विभाग, नृत्य विभाग, कला, दृश्य कला और लोक संगीत विभाग इसके हिस्से हैं और इनके द्वारा इनसे जुड़े क्षेत्रों में प्रमाण पत्र स्तर से लेकर डॉक्टरेट स्तर तक के पाठय़क्रमों को तैयार किया गया है, जो देश भर में उत्कृष्टता के लिए जाने जाते हैं। अल्पकालीन पाठय़क्रमों से लेकर दीर्घकालिक पाठय़क्रम यहां उपलब्ध हैं।

विशेषताएं

सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, स्नातक, परास्नातक और विषय विशेष में डॉक्टरेट के अलावा यह विश्वविद्यालय विशेष रूप से संगीत के क्षेत्र में इंटर डिसिप्लिनरी रिसर्च के लिए जाना जाता है। यहां देश-विदेश के बहुत से छात्र खुद को भारतीय संगीत में शोध के लिए समर्पित करते हैं। संगीत के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने के बाद धीरे-धीरे यह विश्वविद्यालय अब विजुअल आर्ट्स की शिक्षा का भी महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। यहां का बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स कोर्स छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय है। संगीत में गायन-वादन के अतिरिक्त नृत्य कला में यह कथक और भरतनाटय़म के लिए मशहूर है।

जहां एक तरफ शोधार्थियों के लिए जरूरत का सभी सामान उपलब्ध है, यहां के पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें हैं और साथ ही बहुत बड़ी संख्या में यहां संगीत के महारथियों के ऑडियो और वीडियो टेप्स भी छात्रों के लिए सुलभ हैं। दूसरी तरफ कला के छात्रों के लिए भी यहां विशेष रूप से आधुनिक महान कलाकारों के काम का वीडियो और स्लाइड के रूप में विशाल संग्रह उपलब्ध है। समकालीन कलाकारों और देश की विभिन्न लोक कलाओं का संकलन भी छात्रों के लिए किया गया है।

खैरागढ़ विश्वविद्यालय भारतीय संगीत की दोनों विधाओं, हिंदुस्तानी और कर्नाटक शैली में शिक्षा प्रदान करता है। कला की पारंपरिक और आधुनिक विधाओं में भी यहां छात्रों को पारंगत बनाया जाता है। विदेशी छात्रों के लिए विशेष सुविधाओं का प्रबंध है और उन्हें यहां अंग्रेजी में शिक्षा उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था है। यहां छात्रावास की सुविधा भी है।

फैकल्टी

यहां के छात्रों को संगीत और कला दिग्गजों से मिलने का मौका मिलता है। उनमें से कई यहां अक्सर गेस्ट फैकल्टी के रूप में आते हैं। यहां हर वर्ष संगीत और कला उत्सव मनाया जाता है, साथ ही खैरागढ़ महोत्सव, युवा उत्सव और हर हफ्ते होने वाला श्रुति मंडल कार्यक्रम छात्रों को उनके विषय में प्रयोगात्मक बना कर उनकी प्रतिभा में निखार लाता है।

नए कोर्स

कला-संगीत से जुड़े विषयों पर होने वाले राष्ट्रीय सेमिनार, कला और संगीत के इतिहास में होने वाले बदलावों पर भी यहां अक्सर संगोष्ठियां आयोजित होती हैं। यह विश्वविद्यालय अब रचनात्मक लेखन विषयों में भी अपनी पहचान बना रहा है और साहित्य के विषयों में भी यहां शिक्षा उपलब्ध है।

विशेष तथ्य

संगीत के छात्रों के लिए यहां एक वाद्य गैलरी में सभी तरह के संगीत वाद्यों का संकलन है।

यहां एक गैलरी पुरातात्विक महत्व की भी है, जहां क्षेत्रीय पुरातात्विक कला संग्रह और दस्तावेजों का संकलन है।

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से संबद्ध पैंतालिस महाविद्यालय, एक शोध केंद्र व दसियों परीक्षा केंद्र हैं।

यह विश्वविद्यालय कला-संगीत के क्षेत्र में डिग्री देता है।


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