राग कल्याण || RAAG KALYAN NOTES || RAAG YAMAN NOTES || ध्रुपद की लयकारी || श्याम कल्याण || पूरिया कल्याण || शुद्ध कल्याण

राग कल्याण
सब ही तीवर सुर जहां , वादी गन्धार सुहाय।
अरु संवादी निखाद तें , ईमन राग कहाय।।
इसे कल्याण ठाट से उत्पन्न माना गया है। इसलिये यह अपने ठाट का आश्रय राग है। इसमें वादी स्वर गंधार और सम्वादी निषाद है। इसमें मध्यम तीर्व और अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किया जाता है। जाती सम्पूर्ण – सम्पूर्ण है , क्योँकि आरोह – अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इसे कुछ प्राचीन ग्रंथों में यमन राग भी कहा गया है , किन्तु यमन – कल्याण कहने से राग बदल जाता है। यमन कल्याण में , जिसे कुछ लोग जैमिनी कल्याण भी कहते हैं , तीर्व मध्यम के साथ दो गान्धारो के बिच में शुद्ध मध्यम का अल्प प्रयोग किया जाता है , जैसे प मं ग म ग रे , ग रे नि रे सा। इसके गाने -बजाने का समय रात्रि का पहला प्रहर है।
आरोह- ऩि रे ग, म॑ प, ध नि सां।
अथवा- सा रे ग मं प ,ध नि सां।
अवरोह- सां नि ध प, म॑ ग रे सा।
पकड़- ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा।
राग यमन – लक्षणगीत (तीनताल)
पार ब्रह्म परमेश्वर ” ध्रुपद की लयकारी
दुगुन – स्थाई 4 आवृत्ति की है। इसलिये दुगुन सम पारब्रह्म ” से प्रारंभ होगी और पूरी स्थाई की दो आवृत्ति में आवेगी और सम के पूर्व समाप्त होगी।
तिगुन – स्थाई की तिगुन भी पारब्रह्म अर्थात सम से प्रारम्भ होगी और पूरी स्थायी बोलने के बाद अंतिम पंक्ति यशोदानन्द श्री गोविन्द ‘ को तीन बार बोलेगें तो सम आवेगा।
चौगुन – हम ऊपर बता चुके हैं कि स्थाई चार आवृत्ति की है इसलिये पूरी स्थायी को चौगुन में बोलने पर सम आयेगा।
अंतरा की स्थिति स्थाई के ही समान है , क्योंकि यह भी चार आवृत्ति की है। इसलिये दुगुन , तिगुन तीनो सम से प्राम्भ होगी और तिगुन में अंतिम लाइन को कुल तीन बार गायेंगे।
राग यमन कल्याण – चारताल ( ध्रुपद )
स्थायी

अन्तरा

श्याम कल्याण
राग श्याम कल्याण बडा ही मीठा राग है। यह कल्याण और कामोद अंग (ग म प ग म रे सा) का मिश्रण है।
इस राग को गाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। गंधार आरोह मे वर्ज्य नही है, तब भी ग म् प नि सा‘ नही लेना चाहिये, बल्कि रे म् प नि सा‘ लेना चाहिये। गंधार को ग म प ग म रे साइस तरह आरोह में लिया जाता है। सामान्यतः इसका अवरोह सा’ नि ध प म१ प ध प ; ग म प ग म रे सा इस तरह से लिया जाता है। अवरोह में कभी कभी निषाद को इस तरह से छोड़ा जाता है जैसे – प सा’ सा’ रे’ सा’ नि सा’ ध ध प।
इस राग का निकटस्थ राग शुद्ध सारंग है, जिसके अवरोह में धैवत को कण स्वर के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, जबकि श्याम कल्याण में धैवत दीर्घ है। इसी प्रकार श्याम कल्याण में गंधार की उपस्थिति इसे शुद्ध सारंग से अलग करती है। इसी तरह, अवरोह में, सा’ नि ध प म् ग नही लेना चाहिये, बल्कि सा’ नि ध प म् प ध प ; म् प ग म रे सा ऐसे लेना चाहिये। प सा’ सा’ रे’ सा‘ लेने से राग का माहौल तुरंत बनता है। इसका निकटस्थ राग, राग शुद्ध सारंग है। यह स्वर संगति राग स्वरूप को स्पष्ट करती है –
सा ,नि सा रे म् प ; म् प ध प ; म् प नि सा’ ; सा’ रे’ सा’ नि ध प ; म् प ध प ; ग म रे ; ,नि सा रे सा ; प ध प प सा’ सा’ रे’ सा’ ; सा’ रे’ सा’ ध प म् प ; रे म् प नि सा’ ; नि सा’ ध ध प ; सा’ नि ध प ; म् प ग म प ; ग म रे ; रे ,नि सा;
- थाट
- कल्याण
- राग जाति
- षाडव – सम्पूर्ण
- गायन वादन समय
- रात्रि का प्रथम प्रहर ४ बजे से ७ बजे तक (संधिप्रकाश)
- आरोह – नि सा रे म् प नि सा
- अवरोह- सा’ नि ध प म् प ध प ग म प ग म रे सा, नि सा;
- वादी स्वर – षड्ज/मध्यम
- संवादी स्वर – षड्ज/मध्यम
- षाडव – सम्पूर्ण
- पूरिया कल्याण
यह राग, यमन और पूरिया धनाश्री या पूरिया से मिल कर बना है। इस राग के अवरोह में, उत्तरांग में कल्याण अंग (सा’ नि ध प ; म् ध नि ध प) के पश्चात पूर्वांग में (प म् ग म् रे१ ग रे१ सा) पूरिया धनाश्री अंग अथवा (म् ध ग म् ग ; म् ग रे१ सा) पूरिया अंग लिया जाता है।
राग पूरिया कल्याण में पंचम बहुत महत्वपूर्ण स्वर है। राग यमन की तरह, उत्तरांग में आरोह में पंचम का प्रयोग कम किया जाता है जैसे – म् ध नि सा’। इसी तरह आरोह और अवरोह दोनों में कभी कभी षड्ज को छोड़ा जाता है। आलाप और तानों का प्रारंभ अधिकतर निषाद से किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग पूरिया कल्याण का रूप दर्शाती हैं –
,नि रे१ ग ; ग म् म् ग ; म् ध प ; म् ध नि ध प ; प म् ध प म् ग ; म् रे१ ग ; रे१ सा ; म् ध म् नि ; नि ध म् ध प ; ध नि सा’ नि ध प ; ग म् ध नि सा’ नि ; ध नि ध सा’ ; नि सा’ ; ध नि रे१’ सा’ ; नि रे१’ ग’ ; ग’ म्’ ग’; ग’ रे१’ सा’ ; नि ध नि ध प ; प म् ध प ; म् नि ध म् ग ; म् प म् ग ; प ध म् प म् ग ग रे१ रे१ सा ; ,नि ,ध ,म् ,ध ; ,नि रे१ सा ;
थाट – मारवा
राग जाति – सम्पूर्ण – सम्पूर्ण
गायन वादन समय
रात्रि का प्रथम प्रहर ४ बजे से ७ बजे तक (संधिप्रकाश)
पकड़
निधप म॓ग म॓रे॒ग रे॒सा
आरोह अवरोह
ऩिरे॒ग म॓प धनिसां – सांनिधप म॓गम॓रे॒गरे॒सा
वादी स्वर
सा
संवादी स्वर
प
शुद्ध कल्याण
राग शुद्ध कल्याण में आरोह में राग भूपाली और अवरोह में राग यमन के स्वर प्रयुक्त होते हैं। इस राग को भूप कल्याण के नाम से भी जाना जाता है परन्तु इसका नाम शुद्ध कल्याण ही ज्यादा प्रचलित है।
अवरोह में आलाप लेते समय, सा’ नि ध और प म् ग को मींड में लिया जाता है और निषाद और मध्यम तीव्र पर न्यास नहीं किया जाता। तान लेते समय, अवरोह में निषाद को उन्मुक्त रूप से लिया जाता है पर मध्यम तीव्र को छोड़ा जा सकता है। यह स्वर संगति राग स्वरूप को स्पष्ट करती है –
सा ; ,नि ,ध ; ,नि ,ध ,प ; ,प ,ध सा ; सा ; ग रे सा ; ,ध ,प ग ; रे ग ; सा रे ; सा ,नि ,ध सा ; ग रे ग प रे सा ; सा रे ग प म् ग ; रे ग प ध प ; सा’ ध सा’ ; सा’ नि ध ; प म् ग ; रे ग रे सा ; ग रे ग प रे सा ;
थाट
कल्याण
राग जाति
औडव – सम्पूर्ण
गायन वादन समय
रात्रि का प्रथम प्रहर ४ बजे से ७ बजे तक (संधिप्रकाश)
पकड़
सारेगपरे गरेगसा
आरोह अवरोह
सारेगपधसां – सांनिधपम॓गरेसा
वादी स्वर
ग
संवादी स्वर
ध
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