सितार का इतिहास || sitar history || CLASSICAL MUSIC

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 सितार का इतिहास                                   

सितार की उत्पति के विषय में विद्वानों के भिन्न -भिन्न मत है। कुछ विद्वान है कि सितार का निर्माण वीणा के आधार पर हुआ है। कुछ के मतानुसार सितार का अविष्कार 14वीं  शताब्दी में अमीर खुसरों ने किया। तीसरे मतानुसार सितार भारतीय वाद्य है। विभिन्न आंतो के विपरीत यह सभी मानते हैं कि सितार का अविष्कार अमीर खुसरो ने ही किया।

चौदहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में अमीर खुसरों दरबारी गायक थे। कुछ दिन पश्चात अलाउद्दीन  खिलजी ने खुसरों की विद्वत्ता को देख राज्य का मंत्री बना दिया। सन 1517 में दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से अलाउद्दीन  खिलजी ने देवगिरि राज्य पर चढ़ाई कार दी।  इस लड़ाई में देवगिरी की पराजय और अलाउद्दीन की विजय हुई। उन्ही दिनों गोपाल नायक ने देवगिरि राज्य में राज्य गायक हुए। गोपाल नायक की विद्वता और ज्ञान के भण्डार को देख, अमीर खुसरो ने उनसे ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा से अलाउद्दीन खिलजी से आग्रह किया की गोपाल नायक दिल्ली दरबार के योग्य हैं। अलाउद्दीन ने अमीर खुसरो की बात मन ली और गोपाल नायक को सम्मान सहित दिल्ली लाया गया। आमीर खुसरो ने गोपाल नायक से अनेक तालों, रागों एवं वाद्यों की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा के उपरांत गोपाल नायक के सहयोग से अमीर खुसरो ने अनेक रागों ,तालों और सितार तथा तबला वाद्य का अविष्कार किया   

अमीर खुसरो ने विणा के आधार पर सितार का अविष्कार किया। सर्वप्रथम इसमें तीन तार लगाए गए जिससे इस वाद्य का नाम सहतार रखा गया , क्योकि फ़ारसी भाषा  शब्द  का अर्थ तीन होता है। कालांतर में तारों की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए सितार के स्थान पर सात तार कर दिए गए ,जिससे इसका नाम सितार रख दिया गया।

यद्यपि सितार के अविष्कारक का श्र्येय अमीर खुसरो को है ,तथापि सितार के रूप में संशोधन करके उसे आधुनिकतम रूप प्रदान करने का श्रेय जयपुर में रहने वाले तनसेन के द्वितीय पुत्र सूरतसेन के वंशज अमृतसेन एवं उनके पुत्र निहालसेन को है। इस प्रकार एक ओर सितार के  क्षेत्र में प्रकांड विद्वान अमीर खुसरो के वंशजों की परम्परा है,तो दूसरी ओर संगीत सम्राट तानसेन के वंशजों की परम्परा है। इस प्रकार सितार वाद्य के दो प्रमुख घराने प्रचलित हुए। 

सितार के घराने 

(1) सैनी घराना, (2 ) अमीर खुसरो घराना 

(1) सैनी घराना  –  सैनी घराना संगीत सम्राट तानसेन का घराना है। तानसेन के द्वितीय पुत्र सूरतसेन के वंशजों का सम्बन्ध सितार के इस घराना से है। सूरतसेन के वंशज अमृतसेन एक श्रेष्ट सितार वादक थे। इन्होने सितार के स्वरुप में संशोधन किया और उसका प्रचार किया। सितार में गूँज उत्पन्न करने हेतु सितार में सात तारों के स्थान पर 11 अथवा 12 तार और लगा दिए गए जिन्हे तरब का तार कहते हैं। इसको तरबदार सितार भी कहते हैं। अमृतसेन के पौत्र निहालसेन ने सितार के स्तर को और ऊँचा उठाया। इसी वंश के अमीर खाँ सुप्रसिद्ध तंत्रकार हुए ,जिन्होंने सितार में अमीरखानी बाज चलाया। इसके शिष्य इमदाद खाँ  हुए। इमदाद खाँ  के पुत्र स्व.इनायत खाँ थे, जो इस युग के अद्वितीय सीतारिये थे। इन्हीं के पुत्र उस्ताद विलायत खां हैं,जो आधुनिक  काल के बेजोड़ कलाकार हैं।  

(2) अमीर खुसरो के वंशज का घराना (मसीतखानी घराने )  –  जहाँ एक ओर सैनी घराने के कलाकारों ने सितार वादन की कला को बढ़ाया ,वही दूसरी ओर अमीर खुसरो के वंशज एवं शिष्य भी सितार वादन की प्रगति के लिए प्रयत्नशील रहे। इन प्रकार सितार का घराना भी सैनी घराने के साथ प्रगति करता रहा। इस घराने के प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद फिरोज खाँ  हुए हैं। फिरोज खाँ  के पुत्र मसीत खां एक उच्चकोटि के सितार वादक थे। इन दोनों पिता – पुत्र में विलक्षण प्रतिभा थी। इनके नाम से फ़िरोजखानी अर्थात मसीतखानी बज भी चल पड़ी ,जो आज तक प्रचलित है। 

इसके अलावा बरकत उल्ला खाँ भी उच्चकोटि के सितार वादक थे। सितार वादकों का एक वर्ग लखनऊ में भी बस गया। लखनऊ के ही सुप्रसिद्ध सितार वादक राजा खाँ  ने छोटा ख्याल ,कव्वली एवं ठुमरी गायन शैली से प्रभावित होकर द्रुतलय की गतों का निर्माण किया ,जो आधुनिक युग में राजाखानी गत के नाम से प्रसिद्ध है। 


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