तीन ताल ||TEEN TAAL || CLASSICAL MUSIC

TAAL
तीन ताल लयकार गाते -बजाते समय गायक अथवा वादक सर्वप्रथम एक लय निष्चित करता है और तत्पष्चात अपनी कलात्मक साधना का परिचय देता है | आवश्यतानुसार कभी वह एक मात्रा में एक, कभी एक में दो और कभी तीन में स्वर गाता है ,तो कभी वह दो मात्रा में तीन अथवा चार मात्रा में पाँच स्वर उच्चारित करता है | इस प्रकार की वह अनेक क्रियाये करता है | संगीत में इस क्रिया को लयकारी कहते हैं |
लयकारी का नामकरण एक मात्रा में गाये -बजाये जाने वाले मात्राओ के आधार पर होता है | 1 एक मात्रा में जितनी मात्रायें बोली जाती है ,उसी सख्यां के आधार पर लयकारी का नामकरण होता है ,उदाहरणार्थ 1 मात्रा में 3 मात्रा आने वाली लयकारी तिगुण और 2 मात्रा में 3 की लयकारी 3 /2 गुण कहलाती है | गणित द्वारा लयकारी के अनेक प्रकार सम्भव है ,किन्तु क्रियात्मक संगीत में सभी का प्रयोग नहीं होता | हम यहाँ पर प्रयोग की जाने वाली मुख्य लयकारीयों पर प्रकाश डाल रहे हैं –
(1 ) एक गुन अथवा बराबर की लय -एक मात्रा में एक |
(2 ) दुगुन अथवा दो गुन -एक मात्रा में दो |
(3 )आधी गुन -दो मात्रा में एक | इस प्रकार तीन ,चार ,पाचँ ,छः अथवा सात मात्राओं में एक स्वर बोला जा
सकता है ,किन्तु ऐसी लयकारियाँ केवल गणित द्वारा ही सम्भव है ,साधारणतया इनका प्रयोग नही होता|
(4 ) तिगुन -एक में तीन |
(5 ) चौगुन -एक में चार |
(6 )पाचँ गुन -एक में पाचँ |
(7 ) छः गुन -एक में छः |
इस प्रकार से सातगुन ,आठगुन इत्यादि अनेक लयकारियाँ हो सकती है |
(8 ) 1 पूर्णाक 1 /2 गुन अथवा 3 /2 गुन -एक मात्रा में 1 पूर्णाक 1 /2 मात्रायें अथवा दो मात्राओं में तीन मात्रायें
बोलना | इसे आड़ भी कहते हैं | आड़ के दो अर्थ होते हैं | सामान्य अर्थ में कोई भी टेढ़ी लयकारी जैसे 1 में 3
,2 में 3 ,3 में 4 ,4 में 5 इत्यादि लयकारियाँ आड़ कहलाती हैं | विशेष अर्थ में केवल डेढ़ गुन की लयकारी
आड़ कहलाती है | यह तिगुन की आधी होती है |
(9 ) 2 /3 गुन -तीन मात्रा में दो |
(10 ) 4 /3 गुन -तीन मात्रा में चार |
(11 ) 3 /4 गुन अथवा पौन गुन -चार मात्रा में तीन |
(12 ) 5 /4 गुन अथवा सवा गुन -चार मात्रा में पाँच मात्रा बोलना ,जिसे कुआड़ भी कहते हैं |
कुआड़ के अर्थ में भी दो मत हैं | प्रथम मतानुसार सवा गुन कुआड़ कहलाती है और दिव्तीय मतानुसार
आड़ की आड़ कुआड़ कहलाती है |
विभिन्न प्रकार की लयकरियाँ
किसी ताल की स्थायी थाह या एक गुण लय को आधार मानकर उसके दुगुन तिगुण चौगुन आड़ कुआड़ आदि विभिन्न लय के प्रदर्शन की प्रक्रिया को लयकारी कहा जाता है। लय के विभिन्न प्रकार और विभन्न लयकारियाँ जो जोड़ालाप को सौंदर्यावर्ध्दक निषेचन करती है ,विभिन्न ताल लयकारियाँ निम्न है।
तीन ताल की लयकारियाँ -:
TAAL
मात्रा – 16 ,
ताली तीन पर (1 , 5 और 13 वी पर ताली )
विभाग – 4 ,
खाली एक पर ( 9 वी मात्रा पर खाली )
ठाह लय

दुगुन लय

तीगुण लय

चौगुण लय

दुगुन लयकारी की यह विशेषता होती है कि इसमें प्रत्येक दो मात्राओं को एक बना दिया जाया है। विदित है की दुगुन लयकारी में एक मात्रा में दो मात्रा बोली जाती है। साथ ही दुगुन में ताल दो बार पुरे चक्र के साथ बोली जाती है। दुगुन करते समय मात्राएँ एवं विभागों में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इस में दो बोलो को मात्रा मान लिया जाता है। जैसे कि वर्णित है कि दो मात्राओं को एक करने के लिए उनके निचे अर्ध्दचन्द्राकार चिन्ह लगा दिया जाता है। दुगुन करने कि एक और पध्दति भी होती है जिसे एक आवर्तन में दुगुन करना के नाम से सम्बोधित किता जाता है। विदित हो कि पहले जो दुगुन किया गया है, उसमे ताल का चक्र दो बार अर्थात ताल के दो आवर्तन का प्रयोग किया गया है। परन्तु एक आवर्तन में दुगुन करने के लिए मात्रा एवं विभाग तो वैसे ही रहेंगे ,परन्तु एक विशेष स्थान से ताल की दुगुन शुरू की जाएगी एवं इसमें ताल की दो बार पुनरावृत्ति भी नहीं होगी।
तीन ताल हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध तालों में से एक है। यह उत्तर भारत में सर्वाधिक प्रचलित है। यह लयबद्ध सरंचना का सममित स्वरूप है।
यह कुल सोलह (16) मात्राओं का ताल हैं जिसमें चार-चार मात्राओं के चार विभाग होते हैं। तीसरे विभाग में ख़ाली होती है जो नवीं मात्रा पर होती है। पहली मात्रा पर सम होता है।
इसके मूल बोल निम्नलिखित हैं:
धा धिन् धिन् धा। धा धिन् धिन् धा। धा तिन् तिन् ता। ता धिन् धिन् धा |
तीन ताल के कुछ टुकड़े:
धा धिं धिं धा | धा धिं धिं धा | धा तिं तिं ता | ता धिं धिं धा |
ठेका ( मात्राएँ 16 , ताली 3 , खाली 1 )
दूसरा प्रकार:
धा त्रक धिं धा | धा त्रक धिं धा | धा त्रक तिं ता | ता त्रक धिं धा |
तीसरा प्रकार:
धागे धिग धिं धा | धागे धिग धिं धा | धागे तिग तिं ता | तागे धिग धिं धा |
कायदा:
धागे त्रकिट तूना कत्ता | त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट | तागे त्रकिट तूना कत्ता | त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट ||
आमद:
धागे त्रकिट तूना कत्ता | त्रकिट तूना कत्ता त्रकिट | धा तूना कत्ता त्रकिट | धा तूना कत्ता त्रकिट ||
गत
1.
दीं नग किड़ नग | धागे त्रकिट दिने किने | तीं नग किड़ नक | धागे त्रकिट दिने किने ||
2.
दीं नग किड़ नग | दीं नग किड़ नक | धागे त्रकिन दिने किने | दीं नग किड़ नक || तीं नग किड़ नक | तीं नग किड़ नग | धागे त्रकिट दिने किने | दीं नग किड़ नक ||
3.
धागे तिट घिड़ नग | तागे तिट किड़ नक | धिद्ध धिद्ध धिन ता | किड़ नग धागे तिट ||
4.
धा s धिन ता | किड़ नक धागे तिट | ता s धिन ता | किड़ नक धागे तिट ||
5.
धागे तिट घिड़ नग | धागे तिट घिड़ नग | तागे तिट घिड़ नग | धागे तिट घिड़ नग ||
6.
धा किट धा कृधा | किट धागे तिट धीना | गीना त्रकिट तूना कत्ता | घिड़ा sन् नागे तिट || ता किट ता कृधा | किट तागे तिट तीना | गीना त्रकिट तूना कत्ता | किड़ा sन् नागे तिट ||
7.
धागे त्रकिट धिन धिन | धिद्ध धिद्ध धिट तिट | त्रकिट धिने धित त्रकिट | धिट धिट धागे तिट || तागे त्रकिट दिन दिन | धिद्ध धिद्ध धिट तिट | त्रकिट धिने धिट त्रकिट | धिट तिट धागे तिट ||
आमद
दीं नग किड़ नक | धागे त्रकिट दिने किने | धा त्रकिट दिने किने | धा त्रकिट दिने किने ||
तीया
तिट कत गद गिन | धाती धाती टक तग | दगि नधा तीधा तिट | कत गद गिन धाती ||